मंगलवार, 7 मार्च 2017

विरह वेदना




मेरी डायरी (२००३)


हंसना भी वह भूल गया था
और हुआ था वह गंभीर ।
दिल मे छिपी हुई थी पीडा 
आँखे से छलक रहे थे नीर।

अजब धैर्य की छमता थी
फिर भी हुआ था वह अधीर।
दिल मे थी जो विरह वेदना 
रह रह कर ह्रदय रही थी चीर।

सपने उस के टूट गए थे
बिछड गई थी उस की हीर।
शब्दो से व्यक्त क्या होगी
दिल मे उस के थी जो पीर।

एक तरफ सब रिश्ते थें
एक तरफ थी उस की हीर।
इस मे उस का दोष नही था।
वक्त ने खींची थी ये लकीर ।
रिश्तो को वह तोड न पाया
बिछड गई फिर उस की हीर।
दिल की दुनिया उजड चुकी थी
अब तो था वह एक फकीर ।

वक्त ने सब कुछ बदल दिया
पर ना बदली वो तस्वीर 
शायद यही जीवन है या
इसी को कहते है तकदीर ।




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