बुधवार, 25 जुलाई 2018

कलुआ की अम्मा


अम्मा पर कविता सुन‌ लिन्हीनी
हो गइल बहुत अधीर तब कलुआ
बोला कलुआ  हम तुमरी सेवा करिबा
तुम्हरे दुख हम सारे हरि बा ।
अम्मा खीस निपोरे बोली
बात तोल मोल के बोली
बस एक्कै दिन तुम करि लेओ सेवा
मान लेब तुम हमरी नौका के खेवा ।
रउआ अब्बै से शुरू हऊ जाओ
तनि एक लुटिया पानी लाओ
खुशी खुशी उ पानी लावा
मन ही मन खूब हर्षावा
लेओ अम्मा पीओ पानी
अब हम जाई  मौज छानी
अभी कहां जावत हौ लल्ला
तनि गोढ दबा, हम खाब रसगुल्ला ।
लगा दाबने कलुआ गोढ,  अलसाया पर करे क्या और
इत्ते मा अम्मा चीखी, खुद कम हिल और लगा तनि जोर
घंटा एक आध ही बीता, पर एक दशक कलुआ पे बीता
फिर अम्मा बोली बस कर लल्ला
ले झवाला ले आवा तनि‌ गल्ला
घुइयां कुंदरु जरूर ले अइयो
आज यही खान तुम खईयो।
कलुआ कहे दो टिटुआ दाब
पर हम यो जहरु ना खाब ।।
 अम्मा आंखों कढे बोली
चप्पल खईयो या सीधे जइयो।
सुन कलुआ अति खिसियाना
उठा झोला हुआ रवाना ।
रजुआ बबलू गुड्डू मिलिगे
बावन पत्ता‌ हाट मा बिछगे।
दे दना दन गुल्ला बेगी
जेबन के सब पईसा झरिगे।
तभी हाट मा हुई बत्ती गुल
सबही बोले लेओ दस बजिगे।
ना जेब मा पईसा ना झोरा मा सब्जी
अब तो सिर्फ बनिहे चटनी ।
थर थर कलुआ भय से कांपे
उल्टे पांव घर को भागे
घर पहुंच सूरत बना लीनिहिस  रोनी
जोर से चीखा ,कोई जेब काट लीनी ।
अम्मा आई , धीरे से मुस्कुराई
फिर रजोला खबरी की वीडियो दिखाई ।
का करे ना कलुआ को सूझे
अब का होई कौन ये बूझे ।
तुमरी कसम ना पत्ता खिलिबे।
उई तो तीन वो कुत्ता मिलिगे ।
तुम भूखी हुईयो हमरी गलती
हम ही नालायक कूटों जल्दी
ना सेवा एकौ दिन करि पावा
इत्ता कहे मा आंख भरि आवा ।
आंतें तो  तुमरी भी कल्लावत हुईये ।
जिय लल्ला तोहार भी बिल्लावत हुईये।
अरे हम मां है सब जानित है तुम्हारी पीर
हाथ मू धो कर आ ,देख बनी है मेवा खीर ।।
कलुआ भौचक्का देख रहा अपनीअम्मा की आंख के नीर।
अब कलुआ समझा अम्मा क्या है
धरनी में उस की जगह क्या है ।
अम्मा बोली क्या सोच रहा है
चल जल्दी कर काहे मनमोस रहा है।
कलुआ को अब खीर न मीठी लगती।
सारी मिठास अम्मा में  ही थी ।





























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