शनिवार, 30 जुलाई 2022

राम का शोक


                 

छंद-       बिहारी छंद 

रस-       करुण

प्रसंग- लक्ष्मण जी को शक्ति बांण लगने पर भगवान  राम  का शोक 


(१)  लक्ष्मण उर शक्ति सर लगा, राम मनुहार।

       व्याकुल  कपि रीछ भय जगा, प्राण पर भार।।

      मुंदे नयन राम तृण हो, देख न पाये।

      रहे बिलख राम विकल हो, मुख मुरझाए।।


अर्थ- लक्ष्मण जी के ह्रदय में शक्ति बांण लगने पर उन को चेतन करने के लिए विनती करते है।उन के प्राणों पर संकट देख कर रीछ तथा वानर व्याकुल हो भयभीत हो जाते हैं।

भगवान राम द्वारा लक्ष्मण जी की यह दशा देखी नहीं जा रही। उनकी आंखें बंद है तथा वह तिनके के समान टूट रहे हैं। राम व्याकुल होकर बिलख रहे हैं तथा उनका सुंदर मुख मुरझा गया है।


(२) नेत्र सर सलिल बहत सतत, राम सुधहीन।

      हे ईश्वर कर दान दया, प्राण मत छीन ।।

      प्राण निज हर ले अखिल हो, जीवन लघु का।

      हाय अनुज अशेष मन हो, गौरव रघु का।।


अर्थ-  राम के नेत्र सरोवर से जल निरन्तर बह रहा है तथा वो सुध खो बैठे है।

हे ईश्वर दया का दान करिए,प्राण मत छीनिए ऐसी प्रार्थना वह ईश्वर से करते है।

मेरे प्राण ले लीजिए पर छोटे भाई के जीवन का क्षय न हो।हाय कनिष्ठ (छोटा भाई) तुम मेरा सम्पूर्ण मन हो तथा रघुकुल के गौरव हो।


(३) डोल महि पुरुषार्थ पर जिस, मूर्छित अथाह।

      रावणसुत आनन्दित मय, ह्रदय  जय चाह।।

      सखा सुख दुख के मम अनुज, साथ न छोडो।

      अग्रज अनुनय  भातृ लखन, लोचन खोलो।।


अर्थ-  जिस के पुरुषार्थ से धरती डोल जाती है वह गहरी मूर्क्षा में है। रावण पुत्र मेघनाद अत्यंत प्रसन्न हैं। उस के ह्रदय में विजय की अभिलाषा है।

सदैव सुख दुख के साथी, मेरे छोटे भाई साथ मत छोड़ो। अपने बड़े भाई की विनती सुनो और अपनी आंखों को खोलो।


(४)।  वनवास मुझे था करना, कंटक पथ पर।

        छाया बन वह साथ रहा, चपल न क्षण भर।।

        निर्वासित स्व सिया व अनुज, पावत दुख ही।

        सेवा सहज भाव रखते, चाह न सुख की।


अर्थ- कांटों से भरे हुए पथ पर चलते हुए मुझे वन में वास करना था। अपने भाई की रक्षा करते हुए वह(लक्ष्मण) छाया की तरह साथ में रहा।

  सीता व लखन ने खुद को निर्वासित करके सिर्फ दुख ही पाया। वह सेवा का सहज भाव रखते हैं तथा उनमें अपने सुख की इच्छा नही है।


(५)    विश्वामित्र के गौरव हो, तुम कब हारे।

         संघार किये दानव के,  मुनि जन तारे।।

         वन में खर दूषण रिपु थें, विकट विकराल।।

         मारे वह हमने मिलकर, दुष्ट रिपु काल।।

अर्थ- ऋषि विश्वामित्र जी के तुम(लखन) गौरव हो। तुम अपराजेय हो। दानवों का दमन करते हुए तुम ने ऋषियों-मुनियों का उद्धार किया है।

 वन में खर तथा दूषण कठिन तथा भयानक शत्रु थे।हम ने मिल कर उन दुष्ट शत्रुओं का संघार उन का काल बन कर किया।


(६)   कष्ट अवनिका सूर्पनखा दंडित दमनित।

        टिड्डी दल बने यह अमित्र धावत गमनित।

        निद्रा पल भर ना ग्रसती चेतन पल हर,

        निश्चेत हुआ क्षण भर में, उर पर अहि सर।



अर्थ-  माता सीता के लिए कष्ट सूर्पनखा को दंडित कर पाठ पढ़ाया था। उस के बाद हुए युद्ध में शत्रुओं की सेना टिड्डियों के दल जैसे छाए थें वो उल्टा भाग खड़े हुए थे ।

 जो कभी एक पल के लिए भी नहीं सोता था तथा हर पल चेतन रहता था वह ह्रदय स्थल पर सर्प बांण लगने पर एक क्षण में अचेत हो गया।


(७)   हूं मैं अपराधी मम प्रिय मां,अमिय सुमित्रा 

        न कह प्रतिवचन मैं सकता नीरव भी ना।

        हाय प्रिय सखा प्राण रहे मम् उर स्पंदन,

        रहे बिलख राम शिशु बने मार्मिक क्रंदन।


अर्थ-  मैं अपनीअमृत रूपी प्रिय  मां सुमित्रा का अपराधी हूं। जब वो मुझ से लक्ष्मण के बारे में पूछेंगी तो न तो मैं उन को उत्तर दे पाऊंगा और ना ही चुप रह पाउंगा।

 भगवान राम कहते हैं कि मेरे ह्रदय के स्पंदन, मेरे प्रिय तुम्हारे प्राण सुरक्षित रहे यह कह कर वह शिशु की भांति बिलख रहे हैं। उन का क्रंदन(रोना) बहुत मार्मिक है।


(८)    आनन अमिय वास मम हिय अवरज सहचर,

         ईश विषधर माहुर ग्रसित मानव बन कर।

        कपोल लवणीय नयनजल, जनु  तट नदीश।

        व्यथित व करुणित करुणजलधि,  चिंतित कपीश‌।


अर्थ - हे अनुज मेरे सखा, तुम्हारी मुखाकृति मेरे ह्रदय में अमृत समान है। जो समस्त विषधरों (सर्प) के ईश्वर है वह मानव रूप में स्वयं विषग्रस्त है।

 भगवान राम के गाल नमकीन आंसुओं से  गीले हैं और ऐसा लग रहा है कि तो सागर के तट हों।करुणा के सागर स्वयं करुणित व व्यथित हैं। पवनसुत यह देख कर चिंतित हैं।





बुधवार, 24 अप्रैल 2019

सौंदर्य दर्शन

अधर देख मन अधर में झूले,वो पारस जो उन को छू ले।
स्पर्श रसीले रदपुट करने ,मधुकर अनंगी व्यग्र हो डोले।
उन्नत कुच सदृश  पर्वत, असीम  क्षीर सागर सत सत।
कुचाग्र उर्ध पुष्ट आकर्षक, कृष्ण द्राक्षा कामरस वर्षक।।
भार हिमाचल सा धारण कर, कंचुकी धन्य  हो जाती नमन।

जो कटि छुए कटि जाए वो उंगली।मुख पानी आए जैसे इमली ।
कस्तूरी घनी गहरी अन्धकूप,पर लगती पूस माह की धूप।
कुंतल घन घनघोर श्याम ,द्युति लोप हुई तमसमय याम।
लोचन विशाल अप्सरा उर्वशी, भृकुटी तान उद्विग्न प्राण।
श्वेत रद पंक्ति शोभायमान , सुधाकर अनेक विराजमान!
कपोल कोमल यौवन उद्गगारक , ह्रदय अभीप्सा चितवन अति मारक।
श्रोणि मलय दृग शीतल कारक, उर मनमथाग्नि अति दाहक।
जघन सुघड स्तम्भ व्योम,उद्दीपन पुरूषार्थ होम।
चक्षु पुतलिका कृष्ण विविर, अस्तित्व लुप्त इन मे गिर गिर।
अशेष चेतना ओत प्रोत , खिंच चली वहीं आकर्षण स्रोत।
तन, मन की सुध बुध हारक, वही श्रजन वही संघारक।
पलक झपक आमंत्रण देती, मन विलय कर प्राणो का निलय कर देती।
कंचन तन है अशेष सृष्टि, आप्लवित प्राण स्पंदन अमिय वृष्टि।



                                 खन्ड २
कर्ण कुन्डल है परिक्रमा पथ धरा का, और चित मेरा 
धरा है ।
द्रुत द्वैत गति अविराम है यह,स्थिर द्रग निष्काम है ।
है वहीं फिर , था जहां वह,मापने अपरिमित चला है।
नथ मनमथ मन मथ देती,कष्ट विरह का हर लेती ।
टिकली शोणित ललाट शोभित, उदित रवि सी
ऊर्जा भर देती।
श्वेत माणिक कंठमाल,हो दीप्त ह्रदय को दिनकर कर देती।
बाजूबंध पाश भुजबल का, हो शूरवीर भी भयभीत विकल।
कंकड खनन खनन मन भावन, स्वर सप्त नतमस्त कर्णप्रिय पावन।
मुद्रिका मन मुदित कारक , धन्य अनामिका धरित्री चित हारक।
कटिबंध मध्यांक पर विराजमान, है परिसीमा इस गगन की।
पग प्रसून है मंगलकारी, कर स्पर्श धन्य रेणुका होतीधरनि की।




बुधवार, 25 जुलाई 2018

झोलाछाप

बच्चा अपनी मां से कहता है
मां मैं भी झोलाछाप बन जाऊंगा।
फिर उस झोले में दवा भर लाऊंगा ।
हां , मैं भी झोलाछाप बन जाऊंगा ।।
गोरी को इंजैक्शन तो कलूटी को गोली खिलाऊंगा ।
मैं भी छोलाछाप बन जाउंगा ।
हर मर्ज में विटामिन, कैल्शियम और आयरन की दवा खिलाऊंगा ।
मैं भी पैसा खूब कमाऊंगा ।।
एक आध मर भी जाए तो मेरा क्या है।
झोला उठा कर कहीं और दुकान लगाउंगा ।
मैं भी यमराज कहलाऊंगा ।
हां , मैं झोलाछाप बन जाउंगा ।।
शिक्षित से तो  साक्षर अच्छा
अक्षर जोड़ दवा का नाम पढ़ पाऊंगा।
मैं भी झोलाछाप बन जाऊंगा।
डाक्टर बनना बड़ा है मंहगा, ना
आधी उम्र गंवाऊंगा
शिक्षा का लाखों रूपय बचाऊंगा ।
मैं झोलाछाप बन जाऊंगा ।।
इतना सुन कर गंभीर हो कर मां बोली
नासपीटे करमजले ,आला ले कर काट गले ।
१ गलत मृत्यु भी हत्या होती , भले सैकड़ों जीवन दे ।
ये व्यवस्था ही नाकारा है ,दोष भला हम किस को दें।
आधी उम्र और मोटा खर्च ,मेहनत कड़ी बनाती डाक्टर  थोड़े।
फिर गांव की धूल ,पथ पर शूल , यहां पे किस्मत कोई क्यो फोड़े।
खूब पैसा और शहर बसेरा ,क्लब की सुविधा क्यो छोड़े।
 भले विषम हो स्थितियां पर एक बात मैं कहती हूं
किसी महात्मा साधु संत से श्रेष्ठ चिकित्सक देखती हूं ।
अपनी विद्या से जीवन देता ,कर्मठ परोपकारी करनी पर ।
सिर्फ वही इकलौता है जो जीवित ईश्वर है धरनीं पर।











कलुआ की अम्मा


अम्मा पर कविता सुन‌ लिन्हीनी
हो गइल बहुत अधीर तब कलुआ
बोला कलुआ  हम तुमरी सेवा करिबा
तुम्हरे दुख हम सारे हरि बा ।
अम्मा खीस निपोरे बोली
बात तोल मोल के बोली
बस एक्कै दिन तुम करि लेओ सेवा
मान लेब तुम हमरी नौका के खेवा ।
रउआ अब्बै से शुरू हऊ जाओ
तनि एक लुटिया पानी लाओ
खुशी खुशी उ पानी लावा
मन ही मन खूब हर्षावा
लेओ अम्मा पीओ पानी
अब हम जाई  मौज छानी
अभी कहां जावत हौ लल्ला
तनि गोढ दबा, हम खाब रसगुल्ला ।
लगा दाबने कलुआ गोढ,  अलसाया पर करे क्या और
इत्ते मा अम्मा चीखी, खुद कम हिल और लगा तनि जोर
घंटा एक आध ही बीता, पर एक दशक कलुआ पे बीता
फिर अम्मा बोली बस कर लल्ला
ले झवाला ले आवा तनि‌ गल्ला
घुइयां कुंदरु जरूर ले अइयो
आज यही खान तुम खईयो।
कलुआ कहे दो टिटुआ दाब
पर हम यो जहरु ना खाब ।।
 अम्मा आंखों कढे बोली
चप्पल खईयो या सीधे जइयो।
सुन कलुआ अति खिसियाना
उठा झोला हुआ रवाना ।
रजुआ बबलू गुड्डू मिलिगे
बावन पत्ता‌ हाट मा बिछगे।
दे दना दन गुल्ला बेगी
जेबन के सब पईसा झरिगे।
तभी हाट मा हुई बत्ती गुल
सबही बोले लेओ दस बजिगे।
ना जेब मा पईसा ना झोरा मा सब्जी
अब तो सिर्फ बनिहे चटनी ।
थर थर कलुआ भय से कांपे
उल्टे पांव घर को भागे
घर पहुंच सूरत बना लीनिहिस  रोनी
जोर से चीखा ,कोई जेब काट लीनी ।
अम्मा आई , धीरे से मुस्कुराई
फिर रजोला खबरी की वीडियो दिखाई ।
का करे ना कलुआ को सूझे
अब का होई कौन ये बूझे ।
तुमरी कसम ना पत्ता खिलिबे।
उई तो तीन वो कुत्ता मिलिगे ।
तुम भूखी हुईयो हमरी गलती
हम ही नालायक कूटों जल्दी
ना सेवा एकौ दिन करि पावा
इत्ता कहे मा आंख भरि आवा ।
आंतें तो  तुमरी भी कल्लावत हुईये ।
जिय लल्ला तोहार भी बिल्लावत हुईये।
अरे हम मां है सब जानित है तुम्हारी पीर
हाथ मू धो कर आ ,देख बनी है मेवा खीर ।।
कलुआ भौचक्का देख रहा अपनीअम्मा की आंख के नीर।
अब कलुआ समझा अम्मा क्या है
धरनी में उस की जगह क्या है ।
अम्मा बोली क्या सोच रहा है
चल जल्दी कर काहे मनमोस रहा है।
कलुआ को अब खीर न मीठी लगती।
सारी मिठास अम्मा में  ही थी ।





























सोमवार, 25 दिसंबर 2017

भाग्य

उस का ना था कोई घर
उस का सब कुछ था मन्दिर परिसर
उस दुखियारी का था एक छोटा बेटा
जिस ने बिना दवा के अपना बाप मरते देखा
                          वह मन्दिर की साफ सफाई करती थी
                   जो मिलता अपना और बच्चे का पेट भरती थी।
एक दिन उस से बच्चे ने पूछा
मां क्या मुझको दूध मिलेगा
बहुत दिनों से नहीं मिला है
क्या मुझ को वह आज मिलेगा।
                        अरे तेरी किस्मत में दूध कहां
                         उसे समझाते हुए बोली मां
                        अभी उन की बात भी ना हुई पूरी
                     एक सज्जन आ खड़े हुए उन से कुछ दूरी पर
सज्जन पुरुष का कद था छोटा
निकली तोंद थी जिस की शोभा
और उन सज्जन के हाथ में था
दुग्ध भरा एक बड़ा सा लोटा
                     आखिर बच्चे ने पूछ लिया
                     मेरे लिए यह दूध है क्या
इतना सुन कर वह मुस्कराए हौले-हौले
फिर आंख गड़ा कर तुनक कर बोले
परे हट जा रे चपड़गंजू
ये दूध पियेंगे भगवान् शंभू
                        वह दूध प्रभू पर चढ़ते देख रहा था
                        बार बार अपनी किस्मत को कोस रहा था
                         इधर लड़के के होंठ सूख रहे थे
                         उधर शंभू जी बड़े मजे से भींग रहे थे
वह दूध तो पी गए थे भगवान
पर उन का पुनः हो रहा था स्नान
जो कुछ अरघे में शेष बचा था
उस को अब चाट रहे थे श्वान
                           दूध पी कर और ले कर अंगड़ाई
                            उस को चिढ़ा रहा था श्वान
                             यह तो किस्मत का खेल है सब
                              समझ चुका था वह नादान ।

दिलजले

जब सांझ ढल जाती है
आग सी दिल में लग जाती है
ऐसे में इश्क के मारो की
फिर से महफ़िल सज जाती है।
                         दिल में कितने ही जख्म लिए
                         फिर से फरियाद लगाते हैं
                         दिल लगे ताजे जख्म भी
                         रिसते हुए नासूर बन जाते हैं
कितने बेबस वह होते हैं
 और तनहाई में रोते हैं
हाल बुरा टूटे दिल का
फिर भी ख्वाब संजोते है
                           जिस ने उन का दिल तोड़ा
                           उस को वह खुदा बनाते हैं
                            उस की ही इबादत करते हैं
                            आंसू की भेंट चढ़ाते हैं ।



रविवार, 24 दिसंबर 2017

दिल से

स्मृति पटल पर हो तुम अंकित
स्वप्नन जगत में हो छाई
किसी भी पल ना होती विस्मित
तुम हो मेरी परछाई
                      मन में मेरे विरह वेदना
                      और ह्रदय में तन्हाई
                      याद किया जब भी तुम को
                      मेरी आंखें भर आईं
खुद से ज्यादा चाहा तुम को
और सही खुद रुसवाई
समझ सकी ना फिर भी तुम
मेरे प्रेम की गहराई
                         तेरे प्रेम में पागल मन
                          क्यो मैंने तुम से प्रीत लगाई
                          तेरे दिल में धड़कन मेरी
                          अब तो देखो सच्चाई।