आज खुशी का अवसर था ।
घर मे आया था नन्हा मेहमान ।।
माँ की खुशी की सीमा ना थी।
उस का पूरा था ये जहान ।।
मन मे अपार ममता थी।
ह्रदय मे कितने थे अरमान ।।
अब अपने लिए न जीती थी वह।
शिशु मे बसे थें उस के प्राण ।।
समय चक्र चल रहा था गति से
चलना ही था उस का काम
शिशु ने सीख लिया था चलना
अपनी माँ के. हाथ को थाम
प्रयत्न था हर खुशी देने का
इसीलिए थे उस के इतने मान
मुख से निकलते ही पूरा होता
जो होता उस का. अरमान
कर्तव्यो का बोझ बहुत था
उठाना जिन्हे ना था आसान
पिता तो यह भूल ही गया था
कब हो जाती सुबह से शाम
कभी उन के अपने भी सपने थे
कर दिए उन्हो ने सब बलिदान
बडी तपस़्या की थी उन हो ने
तब बडा हुआ था. वह नादान
पहले सी अब बात नही थी
बूढा तन था उन दोनो के पास
पर इस का उन को रंज नही था
अपने बेटे से थी जो आस
माता पिता का सपना था वह
उन के दिल की था वह साज
पर उस को कहां थी इस की परवाह
नई जवानी. थी. जो साथ
उस के निर्णय सिर्फ उस के थे
इस मे माँ और पिता का क्या था काम
उन को एक ही पल मे कर के बेगाना
एकदिन जोडा साथ किसी के अपना नाम
जिन से उन का मोह जुड़ा था
उसी ने तोडा था उन का अरमान
माता पिता और घर का कूड़ा
दोनो थे अब एक समान
पूरा जीवन संघर्ष किया
पर ना खोया था सम्मान
अपने ही रक्त से हार गए थे
पल पल सह रहे थे अपमान
कल तक जिसे सुनाई थी लोरी
वही रहा. था. ताने मार
ऐसा हुआ था वह निर्लज्ज
कि शरमा जाए शैतान
बूढ़ी आँखे मे सिर्फ आँसू थे
जुबाँ हो चुकी थी बेजान
अब एक ही इच्छा शेष बची थी
कि जल्दी ही जाए उन के प्राण
ईश्वर से थी एक ही प्राथना
धरती पर आओ भगवान
फिर माँ बाप बन के देखो
जिन की औलादे हो शैतान
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