जब सांझ ढल जाती है
आग सी दिल में लग जाती है
ऐसे में इश्क के मारो की
फिर से महफ़िल सज जाती है।
दिल में कितने ही जख्म लिए
फिर से फरियाद लगाते हैं
दिल लगे ताजे जख्म भी
रिसते हुए नासूर बन जाते हैं
कितने बेबस वह होते हैं
और तनहाई में रोते हैं
हाल बुरा टूटे दिल का
फिर भी ख्वाब संजोते है
जिस ने उन का दिल तोड़ा
उस को वह खुदा बनाते हैं
उस की ही इबादत करते हैं
आंसू की भेंट चढ़ाते हैं ।
आग सी दिल में लग जाती है
ऐसे में इश्क के मारो की
फिर से महफ़िल सज जाती है।
दिल में कितने ही जख्म लिए
फिर से फरियाद लगाते हैं
दिल लगे ताजे जख्म भी
रिसते हुए नासूर बन जाते हैं
कितने बेबस वह होते हैं
और तनहाई में रोते हैं
हाल बुरा टूटे दिल का
फिर भी ख्वाब संजोते है
जिस ने उन का दिल तोड़ा
उस को वह खुदा बनाते हैं
उस की ही इबादत करते हैं
आंसू की भेंट चढ़ाते हैं ।
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